तिरंगा कब ऊंच होही ?

रिगबिग सिगबिग चारों मुड़ा दिया कस बरत रहय झालर लट्टू। झिमिर झिमिर गिरत पानी बरसात म, किंजरे बर निकले संकर भगवान पूछत रहय – काये होवथे पारबती। पारवती मइया किथे – तहूं कहींच नी जानस भगवान, पनदरा अगस्त के भारत अजाद होये रिहीस, ओकरे खुसी म इहां के जनता मन अपन झंडा ल फहराये के बेवस्था करत हे, मिठई बनावत हें, नाचत गावत हें। भगवान किथे – खाये पीये नाचे कूदे के बात समझ आगे पारबती, फेर झंडा काबर फहराथे, मे समझेंव निही य…। मइया किथे – दुनिया ल देखाथें के, हमन अजाद हन, देखव हमर झंडा, एकर ले ऊंच कहींच निये, एकर तरी म हमर समरीद्धी अऊ खुसी देखव – कहिथें। भगवान मने मन सोंचत हे – काये काये करथे बिया मन, इकछा जागरीत होगे जाने अऊ देखे के।
दूसर दिन, बिहिनिया ले ….संकर जी, नावा पटका सलूखा पहीरीस अऊ निकल गे। पारबती हा संकरजी ल भीड़ भड़क्का म जाये बर बरजे रिहीस, बड़ चेता समझा के भेजे रिहीस के, जाये बर जावव फेर, कुछू उलटा सीधा झिन करहू …। सिवजी सभा इसथल तीर पहुंचके, बइठे के जगा खोजे लागीस। भीड़ भड़क्का म नी जाना हे कहिके, खाली दिखत मंच म चढ़गे। उहां एक ठिन बड़े जिनीस चमचम चमचम चमकत खुरसी खाली दिखीस – मोरे बर राखे होही कहिके, टप्प ले बइठगे। तुरते हथियार धरे मनखे पहुंचगे, भगवान ल लगीस पूजा करे बर आये होही, आंखी मूंद लीस, थोरिक बेर म आंखी खुलीस त, अपन आप ल कालकोठारी कस अंधियारी खोली म पइस, अपन सरीर म कतको अकन चोट के निसान देखीस, कपड़ा घला चिरागे रहय। उहां ले डरेस बदल के फेर पहुंचगे मंच करा। तभे दूसर मनखे पहुंचगे ………खुरसी म बइठे लागीस, तइसने म तीसर पहुंचगे। भगवान जान डरीस, येमन तो उही आये जेमन, कुछेच दिन पहिली खुरसी म बइठे बर लड़त रिहीन अऊ कस के लड़ लीन, तंहंले कोंटा म जाके समझऊता घला कर डरीन। कुछ समे तें बइठ, कुछ समे में …. फेर……. तोर, मोर या हमर परिवार के अलावा अऊ कन्हो झिन बइठे पाय, एकर धियान रखना हे। ओतके बेर खरीदागे खुरसी …….। भगवान जान डरीस के येहा, बेचरऊहा खुरसी आय, अऊ ओहा बिन बिसाये बइठत रिहीस, तेकर सेती ओला मार पीट के, काल कोठरी म फटिक दे रिहीन।



भगवान देखत रहय , खुरसी वाला मनखे, एक ठिन बड़े जिनीस खम्बा के तीर म गीस। कोन जनी काये करीस …. सुट ले एक ठिन बड़े जिनीस झंडा ऊंच म लहराये लागीस। जम्मो मनखे खड़े रिहीन। भगवान बइठेच रहय, कहींच नी दिखीस, न समझ अइस। भगवान नारद ल सुरता करीस। नारद किथे – इहां कइसे भगवान ? संकर किथे – देख तो नारद, बड़ बिचीत्तर खेल चलथे। डोरी म बंधाये, एक ठिन झंडा ल फहराये के पाछू भजन गइस, तंहंले झंडा देखते देखत करिया होगे। इहां के मनखे मन तो देवता मन ले घला जादा मनतर जानथे तइसे लागथे रे ….। नारद किथे – तैंहा कहींच नी जानस भगवान, इहां के मनखे मन जे करतब जानथे, तेकर पार, बरम्हा घला नी पा सकय। रिहीस बात झंडा फहराये के, त सुन भगवान ……, येमन जेन झंडा ल फहराये हे, उहीच अतेक ऊंच म जाके लहरावत हे। वा…. तेंहा नी देखे हाबस नारद, एमन तिरंगिया झंडा फहरइन हे, फेर ऊंच म करिया झंडा लहरावथे – संकर भगवान फेर पचारीस। नारद किहीस – तैं निच्चट सिधवा अस जी भगवान, तीन रंग के झंडा फहराये बर सिरीफ अजादी के पहिली मरत रिहीन इहां के मनखे मन। जब ले देस अजाद होये हे तब ले, सब अपन मनपसंद झंडा फहराये अऊ लहराये बर धर लीन। जनता ल बेवकूफ बनाथें तिरंगा देखा के। भगवान किथे – कोन मनखे आये ओहा, अऊ काबर इसने करथें, मजा बताथंव इंकर ….। नारद जवाब दीस – थोरेच बेर पहिली तोर बहां ल हेचकार के, खुरसी ले उतार दे रिहीस तेला भुलागेस का ? मजा पाये ल धरबे या बताये ल धरबे ते, मई पिल्ला जेल म डार दिही, जिनगी भर सरत रहिबे, नंगरा अभिनेता हरस तेंहा, जींस वाला नोहस, तेमा कुछ भी करे के छूट मिल जही। खुरसी वाला मनखे मन, जनता ल देखाये बर तिरंगा ल बांधथें, ओहा बंधायेच रहिथे, ऊप्पर म इंकर करिया झंडा पहुंचथें, अऊ उही ल फहराथें। वासतव म ये, राजनीति के झंडा आये | ये झंडा के खासियत ये आये के, जे मनखे एकर तरी म आथें तेहा, भरस्टाचार, मक्कारी अऊ धोखाबाजी सीख जथे। एकर तरी म भलुक गिनती के मनखे मन रहिथे, फेर उही मन देस म राज करथें, अऊ गजब फूलथे फरथे। सधारन मनखे ल एकर दायरा म खुसरे के कनहो अधिकार निये। फेर एकर छांव के सुख, एकर तरी म ठाढ़ नी होवइया, घला पा जथे।




त ये तिरंगा काये, कोन फहराथें एला ? एहा आम जनता बर आये, उही मन फहराथें, चल दूसर कोती तोला देखाहूं …..। ठईं म, बड़े जिनीस खम्बा गड़े देखीन …। सोंचीन एमा जरूर तिरंगा होही, झंडा लहर लहर लहरावत रहय …. फेर यहा काये, येमे तो दूये रंग के झंडा रहय, उहू अलग अलग कपड़ा म। भगवान पूछीस – तैं तो केहे नारद के तीन रंग के झंडा इहां के जनता फहराथें कहिके ? नारद किथे – ये जेन झंडा दिखथे भगवान, यहू इहां के जनता के नोहे, ये झंडा समपरादायिकता के झंडा आये …. कभू केसरिया ऊंच होवथे, कभू हरियर …..। त एकर तरी म जनता घला ठाढ़हे हे ? एमन भटके मनखे आये, इही झंडा वाला मन हमर ले बेहतर कन्हो निये कहिके जनता ल बरगलाके, अपन उल्लू सोज करे बर, इही झंडा के तरी म सुकून मिले के सपना देखाथें।
तिरंगा कइसना होथे, जेला फहराये बर अतेक बड़ जसन मनाथें, ढमढम करथें, भगवान के मन म देखे के इकछा बलवती होगे। भगवान किहीस – चल अऊ कहूं करा, कहूं न कहूं तीर मिलबे करही। नारद किथे – तैं उहां जाये के साध झिन कर भगवान …, तैं जा नी सकस ओ करा ….। भगवान किथे – तैं चल तो…। थोरेच आगू म लामी लामा खम्बा म सफेद झंडा फहरावत देखीन। नारद बतावन लागीस – येहा झूठ, फरेब अऊ बईमानी के झंडा आये भगवान। यहू बड़ ऊंच उंच म फहरथे। एकरो चमक दमक अऊ महक बड़ दूरिहा दूरिहा फइले हे। फेर एकर तरी म दूसर ल खुसरे बर सोचे परथे। एकर तरी म सिरीफ एकर फहराने वाला या ओकर परिवार खुसर सकत हे, तभे तो एला सारवाजनिक नी फहाराये, अपन अपन घर म फहराथे। एकर छांय केवल ओतकेच झिन ल सुख देथे, जेमन एला फहराये के उदीम करथे।
थोरेच कुन दूरिहा म बड़े जिनीस बनदूक के नली के ऊप्पर म, लाली झंडा फहरावत देखीन। नारद बतावत रहय – ये आतंक के झंडा आये भगवान। एला कभू उग्रवादी, कभू नकसलवादी त कभू अलगाववादी मन ऊंच करत रहिथे। एकर छांव कन्हो ल सुकून नी देवय। फेर केवल अपन बात मनवाये अऊ अपन जिद पूरा करे बर येमन बनदूक म अपन झंडा फहराके दुनिया म अपन नाव ल बगराना चाहथे। एकर तरी कन्हो आना नी चाहे, फेर कभू आकरोस, कभू दुख, कभू पीरा, त कभू सुआरथ के सेती, त कन्हो सवेचछा ले, त कन्हो मजबूरी म ठाड़ हो जथे।
भगवान कथे, परब तो एमन तिरंगा फहराये के खातिर मनाथे, फेर कहुंच करा नी अमरावत हन ओला। अऊ कतका रेंगे लागही नारद। नारद किथे – तैं काबर साध करत हाबस भगवान, तिरंगा देखे के …..। अभू रेंगत रहा मोर संग, उदुप ले कहूं करा मिल सकत हे, ये दे में केहेंव न ….. आगे तोर तिरंगा तइसे लागथे। या यहू नोहे भगवान येहा नीला रंग के झंडा आये या येहा गुलाबी होगे, अरे देखते देखत पिंवरावत घला हे। केऊ रंग बदल डरीस थोरकेच बेरा म। ये झंडा सुआरथी मन के आय। एकर फहराने वाला सुख पाथे जरूर, फेर ओकर बर ओला कतको झूठ बोले बर परथे, केऊ बेर अपन ईमान बेंचथें, अपन जमीर के हतिया कर देथें।




भगवान किथे – ये काकर झंडा आये, कन्हो नी दिखत हे नारद। नारद बतइस – ये तीर झंडाच कहां हे भगवान। केवल खम्बा भर खड़े हे। ये अकरमन्यता के झंडा आये, जेहा दिखय निही। येला सरकारी करमचारी मन फहराथें। ये झंडा के तरी म ठाढ़ होवइया ल बिगन काम बूता करे समरीद्धी मिल जथे। इंकर अपन अलग ले कन्हो असतित्व निये। समे अनुसार देखाये बर के, हमन तुंहर कोती हाबन कहिके, अपन झंडा बदलत रिथे, फेर उहू दिखय निही के, काकर झंडा ल फहरावत हे।
भगवान केहे लागीस – अरे बापरे ! थक गेंव नारद। तिरंगा देखे के साध म, अब मोरो सकती जवाब देथे। नारद किथे – थोरेच कुन अऊ बिलम भगवान ….., मोला तिरंगा कस दिखत हे आगू म फहरे झंडा हा। जाये के रसता म ….. माड़ी भर चिखला, कांटा खूंटी, उघरा नंगरा खेलत कूदत लइका, बलकरहा मेहनतकस जवान, खांसत खखोरत बइठे सियान, मुड़ी ढांके हऊंला धर लजावत रेंगत नावा बहुरिया, खदर छानी माटी के घर कुरिया ….। भगवान पूछीस – तैं कतिहां मोला लेगथस नारद ? नारद जवाब दीस – मे तोला केहे रेहेंव न भगवान, तेंहा झिन साध कर तिरंगा तीर जाये के। काबर, तिरंगा तीर पहुंचे के रद्दा म, न अजादी के पहिली सुख रिहीस, न अभू हे, फेर तोर इकछा ल देखके लाने बर परीस। भगवान किथे – जेकर मन तीर कहींच निये ते मनखे मन, का तिरंगा फहरावत होही, कइसे अपन झंडा ल ऊंच रखत होही, अऊ कइसे अपन झंडा के सुख के अनुभौ करत होही ………… ?



तभे तिरंगा दिखगे। भगवान खुस होके थपड़ी पीटत किहीस – वा ….. उही तिरंगा आये का जी ? कइसे भुंइया म माढ़हे कस दिखत हे ? नारद बतावथे – नानुक ढारा कस लकड़ी के उप्पर म लटके हे भगवान … बने देख। तीर म जाये धरीन। भारी भीड़। जेती देख तेती मनखे के रेलम पेल। हरेक मनखे तिरंगा के छांव म जाना चाहत रहय। भगवान किथे – कइसे करथे बिया मन नारद …… ? नानुक झंडा, एक कनीक ऊंच ….., कतका छांव मिलही, कतेकेच मनखे हमाही ओकर छांव तरी। धियान ले देखन लागीस। जे मनखे आये तिही ओकर छांव म सुकून पाये, सुख के अनुभौ करय, सानती पाये। नारद किथे – इही तिरंगा आये भगवान जेला अजादी के बाद ले अभू तक जनता मन, फहरा के राखे हे। ये बात जरूर हे के येला ओमन ऊंच नी कर सकत हें, फेर येकर छांव म जनता बनके रहवइया कन्हो भी मनखे ल, सुख सानती अऊ सुकून मिलत हे। तिरंगा के सुख म संकर जी अतका बइहागे के, अपन असली रूप म आगे। ओला देखते साठ जनता ओकरे कोती दऊंड़ गीन, पान फूल धरके, अऊ अपन झंडा ल सबले ऊंच करे के मांग करीन। भगवान परसन्न होके किहीन के, बाकी झंडा मन के लमबरदार मन तुंहर सुकून ल देख नी सकय, तेकर सेती, तिरंगा के पहिचान ल, ओकर हक ला, हकले मारके, ऊंच होये ले छेंकत हे। जे दिन तूमन जागरूक हो जहू, जम्मो लबरसट्टा मनला चिन डरहू, उही दिन सबले पहिली करिया झंडा, अपने अपन कोन जनी, कती करा गिर जही तेकर पता नी चले। करिया झंडा ल गिरत देख, भटकइया मनके एको झंडा नी ठहर पाही, सब्बो तरी ऊप्पर पड़पड़ऊंवा गिरके भुंइया म हमा जही, अऊ उही दिन ले देस भर केवल तिरंगा लहराही……………अऊ अतका ऊंच म लहराही के जम्मो धरती एकर खालहे म आके, एकर छांव म सुख के अनुभौ करही।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा
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